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Information about Lord Shri Ramchandra Ji: भगवान श्री रामचंद्र जी के बारे में जानकारी

भगवान श्री रामचंद्र जी के बारे में जानकारी :

भगवान श्री राम जी को विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है।

श्री राम जी का जन्म अयोध्या के राजा दशरथ और कौशल्या के घर हुआ था।

श्री राम जी के भाई लक्ष्मण, भरत, और शत्रुघ्न थे।

श्री राम जी का विवाह मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री सीता से हुआ था।

श्री राम जी को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है।

श्री राम जी ने राजपाट छोड़ कर 14 साल वनवास में बिताए थे।

श्री राम जी ने ही रावण का वध किया था।

श्री राम जी का नामकरण महर्षि वशिष्ठ ने किया था।

श्री राम जी को सूर्यवंशी भी कहा जाता है।

रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी।

श्री राम जी के चरित्र से हमें सहनशीलता, धैर्य, दयालुता, नेतृत्व क्षमता, मित्रता और परिवार में समर्पण की सीख मिलती है।

श्री राम जी राजा दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र थे।

श्री राम जी का सर्वप्रथम उल्लेख वाल्मीकि रामायण एवं पुराणों में मिलता है वाल्मीकि रामायण के अनुसार वेदों में श्री राम जी को परमात्मा/आदिपुरुष/परमपुरुष के रूप में जाना जाता है।

हिंदू ग्रंथों के अनुशार श्री राम जी त्रेता युग में थे। लेखकों के अनुशार उनका समय लगभग 5,000 ईसा पूर्व था। कुछ अन्य शोधकर्ता राम को कुरु और वृष्णि नेताओं की सूचियों के आधार पर 1250 ईसा पूर्व के आसपास मानते हैं।

श्री राम जी बचपन से ही शान्‍त स्‍वभाव के थे। धर्म के मार्ग पर चलने वाले श्री राम जी ने अपने तीनों भाइयों के साथ गुरू वशिष्‍ठ से शिक्षा प्राप्‍त की। किशोरावस्था में गुरु विश्वामित्र उन्‍हें वन में राक्षसों द्वारा मचाए जा रहे उत्पात को ख़तम करने के लिए ले गये। फिर विश्वामित्र जी की तपोभूमि राक्षसों से आक्रांत हो गई। और ताड़का नामक राक्षसी विश्वामित्रजी की तपोभूमि में निवास करने लगी तथा अपनी राक्षसी सेना के साथ बक्सर के लोगों को कष्ट देने लगी।

फिर विश्वामित्र जी के निर्देश अनुशार श्री राम के द्वारा वहीं पर उसका वध हुआ। श्री राम ने उस समय ताड़का नामक राक्षसी को मारा तथा मारीच को पलायन के लिए मजबूर किया था। इसके बाद गुरु विश्‍वामित्र उन्हें नेपाल ले गये और वहां के राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक स्वयंवर समारोह आयोजित किया था। जहां पर भगवान शिव का एक धनुष था जिसकी प्रत्‍यंचा चढ़ाने वाले शूरवीर से सीता जी का विवाह किया जाना था। बहुत सारे राजा महाराजा उस समारोह में शामिल हुए थे। जब बहुत से राजा प्रयत्न करने के बाद भी धनुष पर प्रत्‍यंचा चढ़ाना तो दूर उसे उठा ना मुश्किल था तब विश्‍वामित्र जी की आज्ञा पाकर श्री राम ने धनुष उठा कर प्रत्‍यंचा चढ़ाने का प्रयत्न किया था। उनकी प्रत्‍यंचा चढ़ाने के प्रयत्न में धनुष टूट गया था।

फिर महर्षि परशुराम पता चला तो वे वहां आ गये और अपने गुरू (शिव) का धनुष टूटने पर रोष व्‍यक्‍त किया। लक्ष्‍मण जी उग्र स्‍वभाव के थे। उनका विवाद परशुराम जी से हुआ। तब श्री राम ने बीच में बचाव किया। इस प्रकार सीता का विवाह राम से हुआ और परशुराम सहित समस्‍त लोगों ने आशीर्वाद दिया।

श्री राम जी के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन दिया था। माता कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वचनो के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा था। पिता के वचन की रक्षा के लिए श्री राम जी ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार कर लिया था। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदाहरण देते हुए पति के साथ वनवास चली गई। और वही भाई लक्ष्मण ने भी राम के साथ चौदह वर्ष वन में बिताए थे। छोटे भाई भरत ने न्याय के लिए माता कैकेयी का आदेश ठुकराया और बड़े भाई श्री राम जी के पास वन में जाकर उनकी चरणपादुका ले आए। और फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया था।

 

श्री रामचंद्र जी के 108 नाम जानें :

  1. श्रीराम
  2. रामचन्द्र
  3. रामभद्र
  4. शाश्वत
  5. राजीवलोचन
  6. श्रीमान् राजेन्द्र
  7. रघुपुङ्गव
  8. जानकीवल्लभ
  9. जैत्र
  10. जितामित्र
  11. जनार्दन
  12. विश्वामित्रप्रिय
  13. दांत
  14. शरण्यत्राणतत्पर
  15. बालिप्रमथन
  16. वाग्मी
  17. सत्यवाक्
  18. सत्यविक्रम
  19. सत्यव्रत
  20. व्रतफल
  21. सदा हनुमदाश्रय
  22. कौसलेय
  23. खरध्वंसी
  24. विराधवध-पण्डित
  25. विभीषण-परित्राता
  26. दशग्रीवशिरोहर
  27. सप्ततालप्रभेता
  28. हरकोदण्ड- खण्डन
  29. जामदग्न्यमहादर्पदलन
  30. ताडकान्तकृत
  31. वेदान्तपार
  32. वेदात्मा
  33. भवबन्धैकभेषज
  34. दूषणप्रिशिरोsरि
  35. त्रिमूर्ति
  36. त्रिगुण
  37. त्रयी
  38. त्रिविक्रम
  39. त्रिलोकात्मा
  40. पुण्यचारित्रकीर्तन
  41. त्रिलोकरक्षक
  42. धन्वी
  43. दण्डकारण्यवासकृत्
  44. अहल्यापावन
  45. पितृभक्त
  46. वरप्रद
  47. जितेन्द्रिय
  48. जितक्रोध
  49. जितलोभ
  50. जगद्गुरु
  51. ऋक्षवानरसंघाती
  52. चित्रकूट - समाश्रय
  53. जयन्तत्राणवरद
  54. सुमित्रापुत्र- सेवित
  55. सर्वदेवाधिदेव
  56. मृतवानरजीवन
  57. मायामारीचहन्ता
  58. महाभाग
  59. महाभुज
  60. सर्वदेवस्तुत
  61. सौम्य
  62. ब्रह्मण्य
  63. मुनिसत्तम
  64. महायोगी
  65. महोदर
  66. सुग्रीवस्थिर-राज्यपद
  67. सर्वपुण्याधिकफलप्रद
  68. स्मृतसर्वाघनाशन
  69. आदिपुरुष
  70. महापुरुष
  71. परम: पुरुष
  72. पुण्योदय
  73. महासार
  74. पुराणपुरुषोत्तम
  75. स्मितवक्त्र
  76. मितभाषी
  77. पूर्वभाषी
  78. राघव
  79. अनन्तगुण गम्भीर
  80. धीरोदात्तगुणोत्तर
  81. मायामानुषचारित्र
  82. महादेवाभिपूजित
  83. सेतुकृत
  84. जितवारीश
  85. सर्वतीर्थमय
  86. हरि
  87. श्यामाङ्ग
  88. सुन्दर
  89. शूर
  90. पीतवासा
  91. धनुर्धर
  92. सर्वयज्ञाधिप
  93. यज्ञ
  94. जरामरणवर्जित
  95. शिवलिंगप्रतिष्ठाता
  96. सर्वाघगणवर्जित
  97. परमात्मा
  98. परं ब्रह्म
  99. सच्चिदानन्दविग्रह
  100. परं ज्योति
  101. परं धाम
  102. पराकाश
  103. परात्पर
  104. परेश
  105. पारग
  106. पार
  107. सर्वभूतात्मक
  108. शिव

 

भगवान श्री रामचंद्र जी के 108 नामो के जप करें :

  1. ॐ परस्मै ब्रह्मने नम:
  2. ॐ सर्वदेवात्मकाय नमः
  3. ॐ परमात्मने नम:
  4. ॐ सर्वावगुनवर्जिताया नम:
  5. ॐ विभिषनप्रतिश्थात्रे नम:
  6. ॐ जरामरनवर्जिताया नम:
  7. ॐ यज्वने नम:
  8. ॐ सर्वयज्ञाधिपाया नम:
  9. ॐ धनुर्धराया नम:
  10. ॐ पितवाससे नम:
  11. ॐ शुउराया नम:
  12. ॐ सुंदराया नम:
  13. ॐ हरये नम:
  14. ॐ सर्वतिइर्थमयाया नम:
  15. ॐ जितवाराशये नम:
  16. ॐ राम सेतुक्रूते नम:
  17. ॐ महादेवादिपुउजिताया नम:
  18. ॐ मायामानुश्हा चरित्राया नम:
  19. ॐ धिइरोत्तगुनोत्तमाया नम:
  20. ॐ अनंतगुना गम्भिइराया नम:
  21. ॐ राघवाया नम:
  22. ॐ पुउर्वभाश्हिने नम:
  23. ॐ मितभाश्हिने नम:
  24. ॐ स्मितवक्त्राया नम:
  25. ॐ पुरान पुरुशोत्तमाया नम:
  26. ॐ अयासाराया नम:
  27. ॐ पुंयोदयाया नम:
  28. ॐ महापुरुष्हाय नम:
  29. ॐ परमपुरुष्हाय नम:
  30. ॐ आदिपुरुष्हाय नम:
  31. ॐ स्म्रैता सर्वाघा नाशनाया नम:
  32. ॐ सर्वपुंयाधिका फलाया नम:
  33. ॐ सुग्रिइवेप्सिता राज्यदाया नम:
  34. ॐ सर्वदेवात्मकाया परस्मै नम:
  35. ॐ पाराया नम:
  36. ॐ पारगाया नम:
  37. ॐ परेशाया नम:
  38. ॐ परात्पराया नम:
  39. ॐ पराकाशाया नम:
  40. ॐ परस्मै धाम्ने नम:
  41. ॐ परस्मै ज्योतिश्हे नम:
  42. ॐ सच्चिदानंद विग्रिहाया नम:
  43. ॐ महोदराया नम:
  44. ॐ महा योगिने नम:
  45. ॐ मुनिसंसुतसंस्तुतया नम:
  46. ॐ ब्रह्मंयाया नम:
  47. ॐ सौम्याय नम:
  48. ॐ सर्वदेवस्तुताय नम:
  49. ॐ महाभुजाय नम:
  50. ॐ महादेवाय नम:
  51. ॐ राम मायामारिइचहंत्रे नम:
  52. ॐ राम मृतवानर्जीवनया नम:
  53. ॐ सर्वदेवादि देवाय नम:
  54. ॐ सुमित्रापुत्र सेविताया नम:
  55. ॐ राम जयंतत्रनवरदया नम:
  56. ॐ चित्रकुउता समाश्रयाया नम:
  57. ॐ राम राक्षवानरा संगथिने नम:
  58. ॐ राम जगद्गुरवे नम:
  59. ॐ राम जितामित्राय नम:
  60. ॐ राम जितक्रोधाय नम:
  61. ॐ राम जितेंद्रियाया नम:
  62. ॐ वरप्रदाय नम:
  63. ॐ पित्रै भक्ताया नम:
  64. ॐ अहल्या शाप शमनाय नम:
  65. ॐ दंदकारंय पुण्यक्रिते नम:
  66. ॐ धंविने नम:
  67. ॐ त्रिलोकरक्षकाया नम:
  68. ॐ पुंयचारित्रकिइर्तनाया नमः
  69. ॐ त्रिलोकात्मने नमः
  70. ॐ त्रिविक्रमाय नमः
  71. ॐ वेदांतसाराय नमः
  72. ॐ तातकांतकाय नमः
  73. ॐ जामद्ग्ंया महादर्पदालनाय नमः
  74. ॐ दशग्रिइवा शिरोहराया नमः
  75. ॐ सप्तताला प्रभेत्त्रे नमः
  76. ॐ हरकोदांद खान्दनाय नमः
  77. ॐ विभीषना परित्रात्रे नमः
  78. ॐ विराधवाधपन दिताया नमः
  79. ॐ खरध्वा.सिने नमः
  80. ॐ कौसलेयाय नमः
  81. ॐ सदाहनुमदाश्रिताय नमः
  82. ॐ व्रतधाराय नमः
  83. ॐ सत्यव्रताय नमः
  84. ॐ सत्यविक्रमाय नमः
  85. ॐ सत्यवाचे नमः
  86. ॐ वाग्मिने नमः
  87. ॐ वालिप्रमाथानाया नमः
  88. ॐ शरणात्राण तत्पराया नमः
  89. ॐ दांताय नमः
  90. ॐ विश्वमित्रप्रियाय नमः
  91. ॐ जनार्दनाय नमः
  92. ॐ जितामित्राय नमः
  93. ॐ जैत्राय नमः
  94. ॐ जानकिइवल्लभाय नमः
  95. ॐ रघुपुंगवाय नमः
  96. ॐ त्रिगुनात्मकाया नमः
  97. ॐ त्रिमुर्तये नमः
  98. ॐ दुउश्हना त्रिशिरो हंत्रे नमः
  99. ॐ भवरोगस्या भेश्हजाया नमः
  100. ॐ वेदात्मने नमः
  101. ॐ राजीवलोचनाय नमः
  102. ॐ राम शाश्वताया नमः
  103. ॐ राम चंद्राय नमः
  104. ॐ राम भद्राया नमः
  105. ॐ राम रामाय नमः
  106. ॐ सर्वदेवस्तुत नमः
  107. ॐ महाभाग नमः
  108. ॐ मायामारीचहन्ता नमः

 

श्री राम चालीसा जानें :

दोहा :

आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं

वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं

बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्

पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं

चौपाई :

श्री रघुबीर भक्त हितकारी ।

सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥

निशि दिन ध्यान धरै जो कोई ।

ता सम भक्त और नहिं होई ॥

ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ।

ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥

जय जय जय रघुनाथ कृपाला ।

सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥

दूत तुम्हार वीर हनुमाना ।

जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥

तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला ।

रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥

तुम अनाथ के नाथ गोसाईं ।

दीनन के हो सदा सहाई ॥

ब्रह्मादिक तव पार न पावैं ।

सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥

चारिउ वेद भरत हैं साखी ।

तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥

गुण गावत शारद मन माहीं ।

सुरपति ताको पार न पाहीं ॥

नाम तुम्हार लेत जो कोई ।

ता सम धन्य और नहिं होई ॥

राम नाम है अपरम्पारा ।

चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥

गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों ।

तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥

शेष रटत नित नाम तुम्हारा ।

महि को भार शीश पर धारा ॥

फूल समान रहत सो भारा ।

पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥

भरत नाम तुम्हरो उर धारो ।

तासों कबहुँ न रण में हारो ॥

नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा ।

सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥

लषन तुम्हारे आज्ञाकारी ।

सदा करत सन्तन रखवारी ॥

ताते रण जीते नहिं कोई ।

युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥

महा लक्ष्मी धर अवतारा ।

सब विधि करत पाप को छारा ॥

सीता राम पुनीता गायो ।

भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥

घट सों प्रकट भई सो आई ।

जाको देखत चन्द्र लजाई ॥

सो तुमरे नित पांव पलोटत ।

नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥

सिद्धि अठारह मंगल कारी ।

सो तुम पर जावै बलिहारी ॥

औरहु जो अनेक प्रभुताई ।

सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥

इच्छा ते कोटिन संसारा ।

रचत न लागत पल की बारा ॥

जो तुम्हरे चरनन चित लावै ।

ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥

सुनहु राम तुम तात हमारे ।

तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे ॥

तुमहिं देव कुल देव हमारे ।

तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥

जो कुछ हो सो तुमहीं राजा ।

जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥

रामा आत्मा पोषण हारे ।

जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा ।

निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥

सत्य सत्य जय सत्य- ब्रत स्वामी ।

सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै ।

सो निश्चय चारों फल पावै ॥

सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं ।

तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा ।

नमो नमो जय जापति भूपा ॥

धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा ।

नाम तुम्हार हरत संतापा ॥

सत्य शुद्ध देवन मुख गाया ।

बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥

सत्य सत्य तुम सत्य सनातन ।

तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥

याको पाठ करे जो कोई ।

ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥

आवागमन मिटै तिहि केरा ।

सत्य वचन माने शिव मेरा ॥

और आस मन में जो ल्यावै ।

तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥

साग पत्र सो भोग लगावै ।

सो नर सकल सिद्धता पावै ॥

अन्त समय रघुबर पुर जाई ।

जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥

श्री हरि दास कहै अरु गावै ।

सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥

दोहा :

सात दिवस जो नेम कर पाठ करे चित लाय ।

हरिदास हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय ॥

राम चालीसा जो पढ़े रामचरण चित लाय ।

जो इच्छा मन में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥

 

श्री रामचंद्र जी की आरती जानें :

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन,हरण भवभय दारुणम्।

नव कंज लोचन, कंज मुख करकंज पद कंजारुणम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…

कन्दर्प अगणित अमित छवि,नव नील नीरद सुन्दरम्।

पट पीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचिनौमि जनक सुतावरम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…

भजु दीनबंधु दिनेशदानव दैत्य वंश निकन्दनम्।

रघुनन्द आनन्द कन्द कौशलचन्द्र दशरथ नन्द्नम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…

सिर मुकुट कुंडल तिलकचारू उदारु अंग विभूषणम्।

आजानुभुज शर चाप-धर,संग्राम जित खरदूषणम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…

इति वदति तुलसीदास,शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

मम ह्रदय कंज निवास कुरु,कामादि खल दल गंजनम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…

मन जाहि राचेऊ मिलहिसो वर सहज सुन्दर सांवरो।

करुणा निधान सुजानशील सनेह जानत रावरो॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…

एहि भाँति गौरी असीससुन सिय हित हिय हरषित अली।

तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनिमुदित मन मन्दिर चली॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन

 

श्री रामचंद्र जी की आरती जानें :

आरती कीजै श्री रघुवर जी की,

सत चित आनन्द शिव सुन्दर की॥

दशरथ तनय कौशल्या नन्दन,

सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन॥

अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन,

मर्यादा पुरुषोत्तम वर की॥

निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि,

सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि॥

हरण शोक-भय दायक नव निधि,

माया रहित दिव्य नर वर की॥

जानकी पति सुर अधिपति जगपति,

अखिल लोक पालक त्रिलोक गति॥

विश्व वन्द्य अवन्ह अमित गति,

एक मात्र गति सचराचर की॥

शरणागत वत्सल व्रतधारी,

भक्त कल्प तरुवर असुरारी॥

नाम लेत जग पावनकारी,

वानर सखा दीन दुख हर की॥

 

श्री रामचंद्र जी के भारत में टॉप 10 मंदिर :

  • अयोध्या राम मंदिर : उत्तर प्रदेश
  • राम राजा मंदिर : मध्य प्रदेश
  • सीता रामचंद्रस्वामी मंदिर : तेलंगाना
  • रामास्वामी मंदिर : तमिलनाडु
  • कालाराम मंदिर : नासिक, महाराष्ट्र
  • त्रिप्रायर श्री राम मंदिर : केरल
  • राम मंदिर : भुवनेश्वर, ओडिशा
  • कोदंडाराम मंदिर : कर्नाटक
  • श्री राम तीरथ मंदिर : अमृतसर
  • रघुनाथ मंदिर : जम्मू

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