राजस्थान का इतिहास जानें :
पुरातत्व के अनुसार राजस्थान का इतिहास पूर्व पाषाणकाल से प्रारम्भ होता है। आज से करीब 30 लाख वर्ष पहले राजस्थान में मनुष्य मुख्यतः बनास नदी के किनारे या अरावली के उस पार की नदियों के किनारे निवास करता था। आदिम मनुष्य अपने पत्थर के औजारों की मदद से भोजन की तलाश में हमेशा एक स्थान से दूसरे स्थान जाते रहते थे इन औजारों के कुछ नमूने बैराठ, रैध और भानगढ़ के आसपास मिले हैं।
ईसा पूर्व 3000 से 1000 के बीच यहाँ की संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता जैसी थी। 12वीं सदी तक राजस्थान के अधिकांश भाग पर गुर्जरों का राज रहा है। गुजरात और राजस्थान का ज्यादातर हिशा गुर्जरत्रा (गुर्जरों से रक्षित देश) के नाम से जाना जाता था।
गुर्जर प्रतिहारो ने 300 साल तक पूरे उत्तरी-भारत को अरब आक्रान्ताओ से बचाया था। बाद में जब राजपूतों ने इस राज्य के विविध भागों पर अपना आधिपत्य जमा लिया तो यह क्षेत्र ब्रिटिशकाल में राजपूताना (राजपूतों का स्थान) कहलाने लगा था। 12वीं शताब्दी के बाद मेवाड़ पर गुहिलोतों ने राज्य किया। मेवाड़ के अलावा जो अन्य रियासतें ऐतिहासिक दृष्टि से प्रमुख भरतपुर, जयपुर, बूँदी, मारवाड़, कोटा, और अलवर रहीं है। इन सभी रियासतों ने 1818 में अधीनस्थ गठबंधन की ब्रिटिश संधि स्वीकार कर ली जिसमें राजाओं के हितों की रक्षा की व्यवस्था थी लेकिन इससे आम जनता असंतुष्ट थी।
सन 1857 के विद्रोह के बाद लोग "स्वतंत्रता आंदोलन" में भाग लेने के लिए महात्मा गाँधी के नेतृत्व में एकजुट हुए। और सन् 1935 में अंग्रेज़ी शासन वाले भारत में प्रांतीय स्वायत्तता लागू होने के बाद राजस्थान में नागरिक स्वतंत्रता तथा राजनीतिक अधिकारों के लिए आंदोलन और तेज़ हो गया था। 1948 में इन बिखरी रियासतों को एक करने की प्रक्रिया शुरू हुई जो 1956 में राज्य में पुनर्गठन क़ानून लागू होने तक जारी रही।
सबसे पहले 1948 में "मत्स्य संघ" बना जिसमें कुछ ही रियासतें शामिल हुईं। लेकिन कुछ समय बाद बाकी रियासतें भी इसमें शामिल हो गईं। सन् 1949 तक बीकानेर, जयपुर, जोधपुर और जैसलमेर जैसी मुख्य रियासतें इसमें शामिल हो चुकी थीं और इसे "बृहत्तर राजस्थान संयुक्त राज्य" का नाम दिया। सन् 1958 में अजमेर, आबू रोड तालुका और सुनेल टप्पा के भी शामिल हो जाने के बाद वर्तमान राजस्थान राज्य अस्तित्व में आया।
अतिप्राचीनकाल में उत्तर-पश्चिमी राजस्थान बीहड़ मरुस्थल नहीं था जैसा की वह आज है। इस क्षेत्र से सरस्वती और दृशद्वती जैसी विशाल नदियां बहती थीं। इन नदी घाटियों में हड़प्पा, ग्रे-वैयर और रंगमहल जैसी संस्कृतियां फली-फूलीं थी। यहां की गई खुदाइयों पांच हजार साल पुरानी एक विकसित नगर सभ्यता का पता चला है। हड़प्पा, ग्रे-वेयर और रंगमहल संस्कृतियां सैकडों किलोमीटर दक्षिण तक राजस्थान के एक बहुत बड़े इलाके में फैली थीं।
इस बात के प्रमाण भी मौजूद हैं कि ईसा पूर्व चौथी सदी और उसके पहले यह क्षेत्र छोटे-छोटे गणराज्यों में बंटा था। इनमें से दो गणराज्य मालवा और शिवी इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने सिकंदर को पंजाब से सिंध की ओर लौटने के लिए बाध्य किया था उस दौरान शिवी जनपद का शासन भील शासकों के पास था और तत्कालीन भील शासकों की शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया का सकता है कि उन्होंने विश्वविजेता सिकंदर को भारत में प्रवेश नहीं करने दिया था। और उस समय उत्तरी बीकानेर पर एक गणराज्यीय योद्धा कबीले यौधेयत केअधिकार में था।
महाभारत में उल्लिखित मत्स्य महाजनपद पूर्वी राजस्थान और जयपुर के एक बड़े हिस्से पर शासन करते थे। जयपुर से 80 कि॰मी॰ उत्तर में बैराठ जो उस समय विराटनगर कहलाता था। भरतपुर, धौलपुर और करौली उस समय सूरसेन जनपद के अंश थे जिनकी राजधानी मथुरा थी।
शिलालेखों से पता चलता है कि कुषाणकाल तथा कुषाणोत्तर तृतीय सदी में उत्तरी एवं मध्यवर्ती राजस्थान काफी समृद्ध इलाका था। राजस्थान के प्राचीन गणराज्यों ने अपने को पुनर्स्थापित किया और वे मालवा गणराज्य के हिस्से बन गए थे। मालवा गणराज्य हूणों के आक्रमण से पहले काफी स्वायत्त् और समृद्ध था। और अंततः छठी सदी में तोरामण के नेतृत्तव में हूणों ने इस क्षेत्र में काफी लूट मचाई और मालवा पर अधिकार कर लिया। लेकिन फिर यशोधर्मन ने हूणों को परास्त कर दिया और दक्षिण पूर्वी राजस्थान में गुप्तवंश का प्रभाव फिर कायम हो गया था। और फिर सातवीं सदी में पुराने गणराज्य धीरे-धीरे अपने को स्वतंत्र राज्यों के रूप में स्थापित करने लगे।
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताओं के केन्द्र जानें :
- कालीबंगा - हनुमानगढ
- रंगमहल - हनुमानगढ
- आहड - उदयपुर
- बालाथल - उदयपुर
- गणेश्वर - सीकर[
- बागोर - भीलवाडा
- बरोर - अनूपगढ़
- राजस्थान की राजधानी : जयपुर
- राजस्थान की भाषा : हिन्दी, राजस्थानी
- राजस्थान के 7 संभाग : जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, अजमेर, उदयपुर, भरतपुर और कोटा
राजस्थान की 19 रियासतों के नाम जानें :
- अलवर
- भरतपुर
- धौलपुर
- करौली
- नीमराणा
- कोटा
- बूंदी
- झालावाड़
- टोंक
- किशनगढ़
- प्रतापगढ़
- डूंगरपुर
- शाहपुर
- बांसबाड़ा
- शाहपुरा
- कुशलगढ़
- जोधपुर
- जैसलमेर
- बीकानेर
राजस्थान के अभयारण्य :
- सीतामाता अभयारण्य
- सज्जनगढ़ वन्यजीव अभयारण्य
- तालछापर कृष्ण मृग अभयारण्य
- जमवारामगढ़ अभयारण्य
- नाहरगढ़ अभयारण्य
- माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य
- सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
- राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव अभयारण्य
- केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान
- रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
राजस्थान के शिक्षण संस्थान :
- वनस्थली विद्यापीठ (मानद विश्वविद्यालय)
- बिरला प्रौद्योगिकी और संस्थान संस्थान (मानद विश्वविद्यालय)
- आई. आई. एस. विश्वविद्यालय (मानद विश्वविद्यालय)
- जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय (मानद विश्वविद्यालय)
- एलएनएम सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (मानद विश्वविद्यालय)
- मालवीया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मानद विश्वविद्यालय)
- मोहन लाल सुखादिया विश्वविद्यालय
- राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय
- राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय
- राजस्थान आर्युवैद विश्वविद्यालय
- राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय
- बीकानेर विश्वविद्यालय
- कोटा विश्वविद्यालय
- राजस्थान विश्वविद्यालय
राजस्थान की जलवायु जानें :
राजस्थान की जलवायु एक ओर अति शुष्क तो दूसरी ओर आर्द्र क्षेत्र हैं। आर्द्र क्षेत्रों में दक्षिण-पूर्व व पूर्वी ज़िले आते हैं।
अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च तापमान, निम्न आर्द्रता तथा तीव्र हवाओं से युक्त शुष्क जलवायु है। ओर अरावली के पूर्व में अर्द्ध-शुष्क एवं उप-आर्द्र जलवायु है जहाँ वर्षा की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
पर्वतों के अतिरिक्त, सभी स्थलों पर ग्रीष्म काल में भयंकर गर्मी व अधिकतम औसत तापमान 42° C रहता है।
प्राकृतिक कारकों के प्रभाव के कारण राज्य का अधिकांश क्षेत्र शुष्क जलवायु वाला है।
विशेषकर रेगिस्तानी क्षेत्रों में गर्म हवाएँ व धूल भरी आंधियाँ चलती हैं। और शीतकालीन तापमान 20-24.5° से. के मध्य रहता है।
पश्चिमी रेगिस्तान में वर्षा सालाना औसत 100 मिमी. होती है। और
दक्षिण-पूर्वी राजस्थान अरब सागर व बंगाल की खाड़ी की पश्चिमी मॉनसून की दोनों शाखाओं से लाभान्वित होता है व इस क्षेत्र में 90% वर्षा इन्हीं के द्वारा होती है।
राजस्थान के जलवायु प्रदेश :
शुष्क जलवायु प्रदेश : इसके अंतर्गत जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर का पश्चिमी भाग, गंगानगर का दक्षिणी भाग और जोधपुर की फलौदी तहसील का पश्चिमी भाग आता है।
अर्द्ध-शुष्क जलवायु प्रदेश : इसके अंतर्गत गंगानगर, बीकानेर, बाड़मेर ज़िले के पश्चिमी भागों के अतिरिक्त सभी भाग चुरू, सीकर, झुंझुनू, नागौर, पाली व जालौर के पश्चिमी भाग आता हैं।
उप-आर्द्र जलवायु प्रदेश : इसके अंतर्गत अलवर, जयपुर, अजमेर, झुंझुनू, सीकर, पाली व जालौर ज़िलों के पूर्वी भाग तथा टौंक, भीलवाड़ा व सिरोही के उत्तरी-पश्चिम भाग आता है।
आर्द्र जलवायु प्रदेश : इसके अंतर्गत भरतपुर, धौलपुर, सवाई माधोपुर, बूंदी, कोटा, दक्षिणी-पूर्वी टौंक तथा उत्तरी चित्तौड़गढ़ के ज़िले आते हैं।
अति आर्द्र जलवायु प्रदेश : इसके अंतर्गत दक्षिण-पूर्वी कोटा, झालावाड़, बांसवाड़ा, उदयपुर ज़िले का दक्षिण-पश्चिमी भाग तथा माउण्ट आबू के समीपवर्ती भू-भाग आते हैं।
राजस्थान की कृषि जानें :
राजस्थान मुख्यत: एक कृषि व पशुपालन प्रधान राज्य है जो अनाज व सब्जियों का निर्यात करता है। और अल्प व अनियमित वर्षा के बावजूद भी लगभग सभी प्रकार की फ़सलें उगाई जाती हैं।
राज्य में गेहूं व जौ का विस्तार अच्छा-ख़ासा (रेगिस्तानी क्षेत्रों को छोड़कर) है ऐसा ही दलहन (मटर, सेम व मसूर जैसी खाद्य फलियाँ), गन्ना व तिलहन का विस्तार भी है।
चावल की उन्नत किस्मों को लाया गया है एवं चंबल घाटी और इंदिरा गांधी नहर परियोजनाओं के क्षेत्रों में इस फ़सल के कुल क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है।
राजस्थान में कपास व तंबाकू महत्त्वपूर्ण नक़दी फ़सलें हैं। और राजस्थान में बड़ी संख्या में पालतू पशू हैं व राजस्थान सर्वाधिक ऊन का उत्पादन करने वाला राज्य भी है।
राजस्थान राज्य में वर्ष 2006-07 में कुल कृषि योग्य क्षेत्र 217 लाख हेक्टेयर था और वर्ष (2007-08) में अनुमानित खाद्यान उत्पादन 155.10 लाख टन रहा।
राजस्थान में जनजातियाँ जानें :
पूर्वी एवं दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र :
अलवर, भरतपुर, धौलपुर, जयपुर, दौसा, सवाई माधोपुर, करौली, अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक, कोटा, बारां, बूंदी, झालावाड़ क्षेत्रों में मीणा जाति का बाहुल्य है। और अन्य जनजातियां भील, सहरिया और सांसी पाई जाती है।
दक्षिणी क्षेत्र :
सिरोही, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर क्षेत्र में भील, मीणा, गरासिया, डामोर मुख्य रूप से निवास करते हैं। 70 प्रतिशत गरासिया जनजाति सिरोही आबूरोड तहसील में निवास करती है। 98 प्रतिशत डामोर जनजाति डूंगरपुर जिले की सीमलवाडा तहसील में निवास करती है।
उत्तर पश्चिम क्षेत्र :
झुंझुनू, सीकर, चूरू, हनुमानगढ़, गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, नागौर, जोधपुर, पाली, बाड़मेर, जालोर इन क्षेत्रों में मिश्रित जनजातियाँ पाई जाती है।
राजस्थान की प्रमुख जनजातियाँ जानें :
भील
मीणा
गरासिया
साँसी
सहरिया
कंजर
डामोर
कथौडी
कालबेलिया
राजस्थान में पर्यटन के प्रमुख केंद्र जानें :
जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर, माउंट आबू
अलवर में सरिस्का बाघ विहार
भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी विहार
अजमेर, जैसलमेर, पाली, चित्तौड़गढ़
कौलवी राजस्थान के झालावाड़ ज़िले के निकट एक ग्राम जो बौद्ध विहार के लिए प्रसिद्ध है।
केशवरायपाटन प्राचीन नगर राजस्थान के कोटा शहर से 22 किमी. दूर चम्बल नदी के तट पर है।
राजस्थान के लोक देवी देवता जानें :
रामदेवजी :
रामदेवजी रुणिचा, नवलगढ़ में स्थित है। ग़रीबों के रखवाले रामदेव जी का अवतार ही भक्तों के संकट हरने के लिए ही हुआ था। राजस्थान में जोतपुर के पास रामदेवरा नामक स्थान है। जहाँ प्रतिवर्ष रामदेव जंयती पर विशाल मेला लगता है।
जाम्भोजी : जाम्भोजी का जन्म नागौर ज़िले के पीपासर ग्राम मे विक्रम सम्वत 1508 में हुआ और यह सुरापुर, जांगला में स्थित है।
गोगाजी : एकता व सांप्रदायिक सद़भावना का प्रतीक धार्मिक पर्व गोगामेडी राजस्थान में गोगाजी की समाधि स्थल लाखों भक्तों के आकर्षण का केंद्र है।
जीणमाता : जयपुर बीकानेर मार्ग पर जीण माता का मंदिर है।
शाकम्भरी माता : शाकम्भरी माता सांभर में स्थित है।
सीमल माता : सीमल माता बसंतगढ़, सिरोही में है।
हर्षनाथ जी : हर्षनाथ जी सीकर में स्थित है।
केसरिया जी : धुवेल, उदयपुर में स्थित है।
मल्लीनाथ जी : मल्लीनाथ जी तिलवाडा में स्थित है।
शिला देवी : शिला देवीआमेर में स्थित है।
कैला देवी : कैला देवी करौली में स्थित है।
ज्वाला माता : ज्वाला माता, जोबनेर में स्थित है।
कल्ला देवी : कल्ला देवी सिवाना में स्थित है।
तेजा जी : तेजा जी परबतसर में स्थित है।
पाबूजी : पाबूजी कोलुमंड में स्थित है।
खैरतल जी : खैरतल जी अलवर में स्थित है।
करणी माता :करणी माता देशनोक, बीकानेर में स्थित है।
राजस्थान के रीति-रिवाज जानें :
आठवाँ पूजन : स्त्री के गर्भवती होने के सात माह बाद इष्ट देव का पूजन किया जाता है।
पनघट पूजन या जलमा पूजन : बच्चे के जन्म के कुछ दिनों पश्चात् पनघट पूजन या कुआँ पूजन की रस्म होती है इसे जलमा पूजन भी कहते हैं।
आख्या : बालक के जन्म के आठवें दिन बहनें बच्चे को आख्या करती है और एक मांगलिक चिह्न "साथिया" भेंट करती है।
जडूला उतारना : जब बालक दो या तीन वर्ष का हो जाता है तो उसके बाल उतराए जाते हैं। इस मुंडन संस्कार को ही जडूला कहते हैं।
सगाई : वधू पक्ष की ओर से संबंध तय होने पर सामर्थ्य अनुसार शगुन दिया जाता है।
बिनौरा : सगे संबंधी व गाँव के लोग अपने घरों में वर या वधू तथा उसके परिवार को बुला कर भोजन कराते हैं जिसे बिनौरा कहते हैं।
तोरण : विवाह के समय वर जब बारात लेकर कन्या के घर पहुँचता है तो घोड़ी पर बैठेकर घर के दरवाज़े पर बँधे हुए तोरण को तलवार से छूता है जिसे तोरण मारना कहते हैं।
खेतपाल पूजन : राजस्थान में विवाह का कार्यक्रम आठ दस दिनों पूर्व ही प्रारंभ हो जाता हैं। विवाह से पूर्व गणपति स्थापना से पूर्व के रविवार को खेतपाल बावजी की पूजा करते है।
कांकन डोरडा : विवाह से पूर्व गणपति स्थापना के समय वर या वधू के दाएँ हाथ में मौली से बनाया गया एक डोरा बाँधते हैं जिसे कांकन डोरडा कहते हैं। विवाह के बाद वर के घर में वर-वधू एक दूसरे के कांकन डोरडा को खोलते हैं।
बान बैठना व पीठी करना : लग्नपत्र पहुँचने के बाद गणेश पूजन के पश्चात् विवाह से पूर्व तक प्रतिदिन वर व वधू को अपने अपने घर में चौकी पर बैठा कर गेहूँ का आटा, बेसन में हल्दी व तेल मिला कर बने उबटन (पीठी) से बदन को मला जाता है जिसे पीठी करना कहते हैं। इस समय सुहागन स्त्रियाँ मांगलिक गीत गाती है। इस रस्म को "बान बैठना" कहते हैं।
बिन्दोली : विवाह से पूर्व के दिनों में वर व वधू को घोड़ी पर बैठा कर गाँव में घुमाया जाता है जिसे बिन्दोली कहते हैं।
मोड़ बाँधना : विवाह के दिन सुहागिन स्त्रियाँ वर को नहला कर कुल देवता के समक्ष चौकी पर बैठा कर उसकी पाग पर मोड़ (मुकुट) बांधती है।
बरी पड़ला : विवाह के समय बारात के साथ वर के घर से वधू को साड़ियाँ व अन्य कपड़े, आभूषण, मेवा, मिष्ठान आदि की भेंट वधू के घर पर दी जाती है जिसे पड़ला कहते हैं। इस भेंट किए गए कपड़ों को "पड़ले का वेश" कहते हैं। और फेरों के समय इन्हें पहना जाता है।
मारत : विवाह से एक दिन पूर्व घर में रतजगा होता है देवी-देवताओं की पूजा होती है और मांगलिक गीत गाए जाते हैं। इस दिन परिजनों को भोजन करवाया जाता है। इसे मारत कहते हैं।
पहरावणी या रंगबरी : विवाह के पश्चात् दूसरे दिन बारात विदाई में वर सहित प्रत्येक बाराती को वधूपक्ष की ओर से पगड़ी बँधाई जाती है और यथा शक्ति नगद राशि दी जाती है। इसे पहरावणी कहा जाता है।
सामेला : जब बारात दुल्हन के गांव पहुंचती है तो वर पक्ष की ओर से नाई या ब्राह्मण आगे जाकर कन्यापक्ष को बारात के आने की सूचना देता है। और कन्या पक्ष की ओर उसे नारियल एवं दक्षिणा दी जाती है। फिर वधू का पिता अपने परिवार के साथ बारात का स्वागत करता है यह क्रिया सामेला कहलाती है।
बढार : विवाह के अवसर पर विवाह दूसरे दिन दिया जाने वाला प्रीतिभोज बढार कहलाता है।
कुँवर कलेवा : सामेला के समय वधू पक्ष की ओर से वर और बारात के अल्पाहार के लिए सामग्री देते है जिसे कुँवर कलेवा कहते हैं।
बींद गोठ : विवाह के दूसरे दिन संपूर्ण बारात के लोग वधू के घर से कुछ दूर कुएँ या तालाब पर जा स्नान करने के पश्चात् अल्पाहार करते हैं इसे बींद गोठ कहते हैं।
मायरा : राजस्थान में मायरा भरना विवाह के समय की एक रस्म है। इसमें बहन अपनी पुत्री या पुत्र का विवाह करती है तो उसका भाई अपनी बहन को मायरा ओढ़ाता है जिसमें वह उसे कपड़े, आभूषण आदि बहुत सारी भेंट देता है एवं उसे गले लगाकर प्रेम स्वरूप चुनड़ी ओढ़ाता है।
डावरिया प्रथा : यह रिवाज अब समाप्त हो गया है। इसमें राजा-महाराजा और जागीरदार अपनी पुत्री के विवाह में दहेज के साथ कुँवारी कन्याएं भी साथ देते थे जो उसकी सेवा में रहती थी। इन्हें डावरिया प्रथा कहते है ।
नाता प्रथा : कुछ जातियों में पत्नी अपने पति को छोड़ कर किसी अन्य पुरुष के साथ रह सकती है। इसे नाता करना कहते हैं। इसमें कोई औपचारिक रीति रिवाज नहीं होता केवल आपसी सहमति ही होती है। विधवा औरतें भी नाता कर सकती है।
अग्नि परीक्षा
दहेज प्रथा
दास प्रथा
डाकन प्रथा
नांगल : नवनिर्मित गृहप्रवेश की रस्म को नांगल कहा जाता हैं।
मौसर : किसी वृद्ध की मृत्यु पर दिया जाने वाला मृत्युभोज मौसर कहलाता है।
राजस्थान के मुख्यमंत्रियों की सूची :
क्रमांक | नाम | पदभार ग्रहण | पद मुक्ति | दल / पार्टी | |
---|---|---|---|---|---|
1 | हीरा लाल शास्त्री | 7 अप्रेल , 1949 | 5 जनवरी, 1951 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
2 | सी. एस. वेंकटाचार | 6 जनवरी, 1951 | 25 अप्रेल , 1951 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
3 | जयनारायण व्यास | 26 अप्रेल, 1951 | 3 मार्च, 1952 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
4 | टीका राम पालीवाल | 3 मार्च, 1952 | 31 अक्टूबर, 1952 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
3 | जयनारायण व्यास | 1 नवंबर, 1952 | 12 नवंबर, 1954 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
5 | मोहन लाल सुखाड़िया | 13 नवंबर, 1954 | 11 अप्रेल , 1957 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
6 | मोहन लाल सुखाड़िया | 11 अप्रेल , 1957 | 11 मार्च, 1962 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
7 | मोहन लाल सुखाड़िया | 12 मार्च, 1962 | 13 मार्च, 1967 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
राष्ट्रपति शासन (13 मार्च, 1967 - 26 अप्रॅल, 1967) | |||||
8 | मोहन लाल सुखाड़िया | 26 अप्रेल, 1967 | 9 जुलाई, 1971 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
9. | बरकतुल्लाह ख़ान | 9 जुलाई, 1971 | 11 अक्टूबर, 1973 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
10 | हरी देव जोशी | 11 अक्टूबर, 1973 | 29 अप्रेल, 1977 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
राष्ट्रपति शासन (29 अप्रॅल, 1977 - 22 जून, 1977) | |||||
11 | भैरोंसिंह शेखावत | 22 जून, 1977 | 16 फ़रवरी, 1980 | जनता पार्टी | |
राष्ट्रपति शासन (16 फ़रवरी, 1980 - 6 जून, 1980) | |||||
12 | जगन्नाथ पहाड़िया | 6 जून, 1980 | 13 जुलाई, 1981 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
13 | शिव चरण माथुर | 14 जुलाई, 1981 | 23 फ़रवरी, 1985 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
14 | हीरा लाल देवपुरा | 23 फ़रवरी, 1985 | 10 मार्च, 1985 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
15 | हरी देव जोशी | 10 मार्च, 1985 | 20 जनवरी, 1988 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
16 | शिव चरण माथुर | 20 जनवरी, 1988 | 4 दिसंबर, 1989 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
17 | हरी देव जोशी | 4 दिसंबर, 1989 | 4 मार्च, 1990 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
18 | भैरोंसिंह शेखावत | 4 मार्च, 1990 | 15 दिसंबर, 1992 | भारतीय जनता पार्टी | |
राष्ट्रपति शासन (15 दिसंबर, 1992 - 4 दिसंबर, 1993) | |||||
19 | भैरोंसिंह शेखावत | 4 दिसंबर, 1993 | 29 नवंबर, 1998 | भारतीय जनता पार्टी | |
20 | अशोक गहलोत | 1 दिसंबर, 1998 | 8 दिसंबर, 2003 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
21 | वसुंधरा राजे सिंधिया | 8 दिसंबर, 2003 | 11 दिसंबर, 2008 | भारतीय जनता पार्टी | |
22 | अशोक गहलोत | 12 दिसंबर, 2008 | 13 दिसंबर, 2013 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
23 | वसुंधरा राजे सिंधिया | 13 दिसंबर, 2013 | 16 दिसंबर, 2018 | भारतीय जनता पार्टी | |
24 | अशोक गहलोत | 17 दिसंबर, 2018 | 15 दिसंबर, 2023 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | |
25 | भजन लाल शर्मा | 15 दिसंबर, 2023 | पदस्थ | भारतीय जनता पार्टी |