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33 साल बाद शरद पूर्णिमा पर ग्रहण का साया

मंदिरों में उत्सव दोपहर में ही होंगे

रात 4:23 बजे तक रहेगा चंद्रग्रहण

जयपुर. दिवाली से पहले आकाशीय मंडल में खगोलीय घटनाएं होंगी। सूर्यग्रहण के साथ ही चंद्रग्रहण का साया इस बार विशेष रहेगा। 33 साल बाद आश्विन शुक्ल शरद पूर्णिमा को मध्यरात्रि में खंडग्रास चंद्रग्रहण रहेगा। यह ग्रहण भारत के संपूर्ण भू-भाग के साथ ही अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और एशिया के समस्त भू-भाग में दिखाई देगा।

यह रहेगी अवधि: 28 अक्टूबर को मध्यरात्रि बाद रात 1:05 बजे से चंद्रग्रहण शुरू होकर 2.23 बजे तक यानि 1:18 घंटे ग्रहण की अवधि रहेगी। पढे़ं 33 साल

33 साल...ग्रहण के मध्यकाल में रात 1.44 बजे चंद्रमा की रोशनी 13 प्रतिशत कम यानि ग्रहण युक्त चंद्रमा नजर आएगा। जबकि सूतक शाम 4 बजकर 5 मिनट से ही शुरू हो जाएगा। सन 1986 में मध्यरात्रि में ग्रहण रहा था। शहरवासी इस बार असमंजस में है कि खीर का भोग कैसे लगेगा। इधर, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शरद पूर्णिमा पर व्रत, दान पुण्य का महत्व बताया है जबकि आयुर्वेद के हिसाब से शरण पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा की चांदनी में अमृत का निवास रहता है। इसलिए उसकी किरणों में अमृत्व और आरोग्य की प्राप्ति सुलभ होती है। इसलिए खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा है।

ज्योतिषाचार्य पं.दामोदर प्रसाद शर्मा ने बताया कि चंद्रग्रहण देर रात होने से इस साल शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की धवल रोशनी में खीर नहीं रखी जा सकेगी। वहीं मंदिरों में भी उत्सव दोपहर में ही होंगे। ठाकुर जी सुबह ही धवल पोशाक में दर्शन देंगे। शाम 4 बजे सूतक काल के समय से कीर्तन आदि का दौर शुरू होगा। भगवान के पट मंगल रहेंगे। जरूरतानुसार इस रात चांदनी में खीर ग्रहण के मोक्ष के बाद 2:33 बजे पूजा अर्चना, स्नान आदि के बाद रखी जा सकती है। मान्यता है कि चंद्रमा से अमृत गिरने की अवधि ब्रह्म बेला में मानी गई है। अस्थमा रोगियों के लिए खीर का सेवन औषधि के समान माना है। सूतक प्रारंभ हो जाने के बाद बालक, वृद्ध व रोगियों को छोड़कर धार्मिकजन को भोजन आदि नहीं करना चाहिए। विशेष स्थिति में खीर बनाकर पूर्व दिन की रात्रि में रखकर 28 को सुबह वितरित की जा सकती है।

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