सैनी/माली समाज का इतिहास जानें :
- माली जाति के लोग शूद्र वर्ण के अंतर्गत माने जाते हैं ।
माली समाज की कुलदेवी : मां चामुंडा
- माली जाति को अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) में वर्गीकृत किया गया हैं।
माली समाज का उपनाम सैनी कब आया जानें :
- राजस्थान के माली समाज ने 1930 के दशक के दौरान सैनी उपनाम अपनाया था जब भारत ब्रिटिश औपनिवेशिक के अधीन था।
- माली और सैनी दो अलग-अलग जातियां हैं माली बगीचे में काम करने वाले व्यक्ति और सैनी एक क्षत्रिय जाती है जो कि उत्तर भारत में पाई जाती है।
- माली जाति पेड़ पौधे लगाने, सब्जियां उगाने का काम करतें है। तथा कुछ जगह इन्हें सैनी या मौर्या भी कहा जाता है ।
- माली जाति उत्तर भारत, पूर्वी भारत के साथ नेपाल और महाराष्ट्र के तराई क्षेत्र में भी पाए जाते हैं।
माली जाति के 7 कुलदेवता : मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु और वशिष्ठ
माली जाति हिंदुओं में पाई जाने वाली एक व्यावसायिक जाति है जो पारंपरिक रूप से माली और फूलवाले के रूप में काम करते थे। फूल उगाने के अपने व्यवसाय के कारण वे खुद को फूल माली कहते हैं। माली पूरे उत्तर भारत , पूर्वी भारत के साथ नेपाल और महाराष्ट्र के तराई क्षेत्र में पाए जाते हैं । मानवविज्ञानी इरावती कर्वे कहते हैं कि मराठा, कुनबी और माली महाराष्ट्र के तीन मुख्य कृषक समुदाय हैं अंतर सिर्फ इतना है कि मराठा और कुनबी सूखे किसान थे जबकि माली पूरे साल खेती करते थे।
माली जाति के लोग सभी प्रकार का अनाज, साग सब्जी, फल फूल और पेड़-पौधे जो भी मारवाड़ में होते है उनकी खेती करना जानते हैं। इसी कारण इनका दूसरा नाम बागवान हैं। माली बरखलाफ दूसरे किसानों की जमीनें हरमौसम में हरी रखते हैं।
माली जाति के लोग अपनी पैदायश महादेवजी के मैल से बताते है। ये बताते है कि जब महादेवजी ने अपने रहने के लिए कैलासवन बनाया तो उसकी हिफाजत के लिय अपने मैल से एक पुतला बनाकर उसमे जान डाल दी और उसका नाम "बनमाली" रखा। फिर उसके दो नाम बनमाली और फूलमाली हो गए। जिन्होंने वन अर्थात् कुदरती जगलों की हिफाजत की और उनको तरक्की दी वे "बनमाली" कहलाये और जिन्होंने अपनी अक्ल ओर कारीगरी से पड़ी हुई जमीनों में बाग और बगीचे लगाये वे "फूलमाली" कहलाये ।
उनमें कुछ छत्री (क्षत्रिय) भी परशुराम के वक्त मिले मुसलमानों के वक्त में इस जाति की ज्यादा तरक्की हुई जबकि उनके डर से बहुत से राजपूत माली बने। उस वक्त कदीमी मालियों के लिए "महुरमाली" का नाम प्रचलित हुआ।
माली जाति की उत्पत्ति के बारे में बहुत राय आई फिर भी विभिन्न ग्रंथो और लेखा जोगा रखने वाले राव, भाट, जग्गा, बडवा, कवी भट्ट, ब्रम्ह भट्ट व कंजर आदि से प्राप्त जानकारी के अनुसार तमाम माली बन्धु भगवान शंकर और माँ पार्वती के पुत्र है एक कथा के आधार पर दुनिया की उत्पत्ति के समय ही माँ पार्वती ने महादेवजी से एक सुन्दर बाग़ बनाने की मांग की तब अनंत चौदस के दिन महादेवजी ने अपने शरीर के मेल से पुतला बनाकर उसमे प्राण फूंके जो माली समाज का आदि पुरुष मनन्दा और उसी समय माँ पार्वती ने कन्या को रूप प्रदान किया जो की सेजा कहलायी थी।
उसके बाद मनन्दा और सेजा को स्वर्ण और रजत से निर्मित औजार कस्सी, कुदाली आदि देकर एक सुन्दर बाग़ के निर्माण का कार्य सोंपा गया मनन्दा और सेजा ने दिन रात मेहनत कर एक खुबसूरत बाग़ बना दिया जो भगवान शंकर और पार्वती की कल्पना से भी बेहतर बना था भगवान शंकर और पार्वती इस खुबसूरत बाग़ को देख कर प्रसन्न हुये और तब भगवान शंकर ने कहा आज से तुम्हे माली के रूप में पहचाना जायेगा और फिर इनका आपस में विवाह कराकर इन्हे अपना काम संभालने को कहा।
आगे चलकर उनके एक पुत्री और बारह पुत्र हुये जिनके नाम अनुसार कुल साड़े बारह ( पुत्री की सन्तानों को आधी जाति में गिना गया और पुत्रों की सन्तानों को बारह जातियों में गिना गया ) तरह के माली जाति में विभक्त हो गए इसी कारण माली समाज को इस उपलक्ष पर अनंत चौदस के दिन माली जयंती अर्थात मनन्दा जयंती बनाते हैं।
सैनी/माली समाज की उपजातियां जानें :
माली समाज में 12 उपजातियां हैं
1. राजभोई माली
2. फूल माली
3. हल्दी माली
4. काछी माली
5. जीरे माली
6. मेवाड़ा माली
7. कजोरिया माली
8. वनमाली
9. रामी माली
10. सैनी माली
11. ढीमर माली
12. भादरिया माली
सैनी/माली समाज के अलग-अलग क्षेत्रों में उपनाम जानें :
राजस्थान :- माली, बागवान, फुले माली, भोई
महाराष्ट्र :- माली, सैनी, गोला, पाटिल, फुले, क्षत्रिय माली, वनमाली
बिहार : माली, क्षत्रिय माली, सैनी, कुशवाला, मेहता, शक
मध्य प्रदेश : माली, क्षत्रिय माली, सैनी, सैनिक क्षत्रिय
यूपी : माली, गोले, पुष्पाध, ब्राह्मण, कम्बोज, बरोलिया, भगत, भंडारी, सैनी,सरायवाल गोत्र
उड़ीसा :- माली, माली, भोई
महाराष्ट्र :- माली, सैनी, गोला, पाटिल, फुले, क्षत्रिय माली, वनमाली
बिहार : माली, क्षत्रिय माली, सैनी, कुशवाला, मेहता, शक
मध्य प्रदेश : माली, क्षत्रिय माली, सैनी, सैनिक क्षत्रिय
यूपी : माली, गोले, पुष्पाध, ब्राह्मण, कम्बोज, बरोलिया, भगत, भंडारी, सैनी,सरायवाल गोत्र
उड़ीसा :- माली, क्षत्रिय माली, सैनी क्षत्रिय, उमराव, हल्दवा
पंजाब : सैनी, माली
हरियाणा : सैनी, माली, सैनिक क्षत्रिय
आंध्र प्रदेश : माली, रेड्डी, क्षत्रिय माली, सैनिक क्षत्रिय, सैनी
कर्नाटक : मैसूर माली, रेड्डी, क्षत्रिय माली, सैनिक क्षत्रिय, सैनी
सौराष्ट्र : सैनी, माली, रामी, शंकरवंशी, काची
मद्रास : रेड्डी, माली सैनी, सैनी क्षत्रिय
सैनी/माली समाज के खांप गौत्र जानें :
चौहान : सूरजवंशी, अजमेरा, निरवाणा, सिछोदिया, जंबूदिया, सोनीगरा, बागडीया, ईदोरा, गठवाला, पलिकानिया, खंडोलीया, भवीवाला, मकडाणा, कसू, भावाला, बूभण, सतराबल, सेवरीया, जमालपुरीया, भरडीया, सांचोरा, बावलेचा, जेवरीया, जोजावरीया, खोखरीया, वीरपुरा, पाथ्परीया, मडोवरा, अलुघीया, मूधरवा, कीराड वाल, खांवचां, मोदरेचा, बणोटीया, पालडि या, नरवरा बोडाणा, कालू, बबरवाल
राठोड़ : सरोल्या, दूणिया, असावरा, तलाच, हिण्डोलिया, अण्डेरिया, जाजपुरिया, मगाणिया, मंगरोला (मंगरूपा), खूर्रिया, खमनोरा, रातलिया सूरजवंशी, कनवारिया, घोघल, भडेल, बदूरा, गढवाल, सोघल, डागी, गागरिया, कस, मूलीया काडल, थाथी, हतूडीया, रकवार, गद्दवार दइया, बानर, लखोड , पारक, पियपड , सीलारी
पंवार : पाडोलिया, पवेडा, परवाल, पाहया, पानडिया, परखण, लोलगपुरा, सजेत्या, धरावणिया, चुसरा, महनाला (मेहन्दाला), ठलका
गहलोत : मण्डावरा, वडेरा, बडाण्या, बरस, वगेरवाल, वगोरिया, बलेणिडया, डागर, सोहित्या, बडगुजर, भदेसरया, कनोजा, आहाड़ा, मांगलीया, सीसोदिया, पीपाडा, केलवा, गदारे, धोरणीया, गोधा, मगरोया, भीमला, कंकटोक, कोटेचा, सोरा, उहड , उसेवा, निररूप, नादोडा, भेजकरा, कुचेरा, दसोद, भटवेरा, पांडावत, पूरोत, गुहिलोत, अजबरीया, कडेचा, सेदाडि या, कोटकरा, ओडलिया, पालरा, चंद्रावत, बूठीवाला, बूटीया, गोतम, आवा, खेरज्या, धूडेचा, पृथ्वीराज गेलो, आसकरण गेलो, भडेचा, ताहड , गेलोत, मूंदोत, भूसंडिया, दोवड , चन्द्रावत, बागरोया, सादवा, रंगिया
सौलंकी : रिछा, जेतल्या, कालडाखा, काकसणिया, ठाकरिया, सरोल्या, चन्दवाडया, रणथम्बा, मुवाला, पालका, मोरी, चालूक्या, लूदरेचा, लासेचा, तोलावत, मोचला, बाघेला
तंवर : गौड़ा, गांछा, आकड़, उसकल्या, कुकडया, भमिया, मेकालिया, दालोटा, कनस्या, कांकरूणा, धाखा, सोपरिया, चन्द्रवंशी, कटीयार, बरवार, हाडी, खंडेलवाल, तंदुवार, कनवसीया, जाठोड कलोड
परिहार : जातरा, गुणिया, डुगलिया, गुणन्दा, सुखला, हेड़ा, बनारिक्या, भीमलपुरिया, पानडिया, भातरा, कच्छावा, सूर्यवंशी, जैसलमेरा मंडोवरा, बावडा, डाबी, ईदा, जेठवा, गौड , पढिहारीया, सूदेचा, तक्खी
कच्छवाहा : सूरजवंशी, नरूका राजावत, नाथावत, द्रोखावत, चांदावत
भाटी : चन्द्रवंशी, सिंधडा, जसलमेरा, अराइयां, सवालखिया, जादम, बूधबरसिंह, जाडेजा,महेचा, मरोटिया, जैसा, रावलोत, केलण, जसोड
सैनी/माली समाज के गोत्र जानें :
- कारोड़िया
- सिंगोदिया
- सांखला
- अन्हेआर्यन
- कोड़ेवाल
- कछवाहा
- बिम्ब (बिम्भ)
- घाटावाल
- रोष
- बहरवालिया
- बदवाल
- बलोरिया
- बंवैत (बनैत)
- बागड़ी
- बंगा
- बसुता (बसोत्रा)
- बाउंसर
- बाण्डे
- भेला
- बोला
- भोंडी (बोंडी)
- मुंध.चेर
- चेपरू(चौपर)
- चंदेल
- चिलना
- दौले (दोल्ल)
- दौरका
- धक
- धम्रैत
- धनोटा (धनोत्रा)
- धौल
- धेरी
- धूरे
- दुल्कू
- दोकल
- फराड
- महेरू
- मुंढ (मूंदड़ा) मंगर
- मंगोल
- मांगियान
- मसुटा (मसोत्रा)
- मेहिंद्वान
- गेहलेन (गहलोत/गिल)
- गहिर (गिहिर)
- गहुनिया (गहून/गहन)
- गिर्ण
- गिद्दा
- जदोरे
- जादम
- जप्रा
- जगैत (जग्गी)
- जंगलिया
- कल्याणी
- कालियान
- कलोती (कलोतिया)
- कबेरवल (कबाड़वाल)
- खर्गल, खेरू
- खुठे
- कुहडा (कुहर)
- कुहाडा
- लोंगिया (लोंगिये)
- सतरावला
- सागर
- सहनान (शनन)
- सलारिया (सलेहरी)
- सूजी
- ननुआ (ननुअन)
- नरु
- पाबला
- पवन
- पीपल
- पम्मा (पम्मा/पामा)
- पंग्लिया
- पंतालिया
- पर्तोला
- तम्बर (तुम्बर/तंवर/तोमर)
- गागिंया
- थिंड
- टौंक (टोंक/टांक/टौंक/टक)
- तोगर (तोगड़/टग्गर)
- उग्रे
- अम्बवाल(अम्बियांन)
- वैद
- तुसड़िये
- तोंदवाल
- टोंडमनिहारिये
- रोहलियान
- गदरियांन
- भोजियान
- विरखेडिया
- भगीरथ
- राज़ोरिया
- अनिजरिया
- खेड़ीवाल
- बबेरवाल
- असावरा
- जाजपुरिया
- सुंगलिया
- धरावणिया
- तलाच
- खमनोरा
- खर्टिया
- टांक
- घासी
- ड़ामटिया
- धोलासिया
- धोरिया
- पथेरा
- मेकालिया
- परखण
- परमार
- कराडिया
- पाडोलिया
- पानडिया
- बडोदिया
- बुगलिया
- मण्डावरा
- भमिया
- मुवाला
- रातलिया
- रेमतिया
- रिछिया
- वडेरा
- वगेरवाल
- वलेणिडया
- सोइतिया
- हिण्डोलिया
- पारोलिया
- घनोपिया
- बूटिया
- लोडियाणा
- मालविया
- राठौड़
- मुवाला
- मतारिया
- चौहान
- दूणिया
- डगारिया
- खुरया
- खडोरिया गोत्र - राजस्थान से खेरली अलवर
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