हनुमान जी के बारे में जानें :
- हनुमान जी भगवान राम के अनन्य भक्त थे।
- हनुमान जी के धर्म पिता वायु थे।
- हनुमान जी की माता का नाम अंजना और पिता का नाम केसरी था।
- हनुमान जी का मूल मंत्र : ॐ श्री हनुमते नमः॥
- हनुमान जयंती चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाते है।
- हनुमान जी को पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है।
- हनुमान जी आजीवन ब्रह्मचारी है।
- हनुमान जी को शिव जी का 11वां रुद्र अवतार मानते है।
- हनुमान जी के कई नाम बजरंगबली, आंजनेय, केसरी नंदन, मारुति, महावीर, कपीश, कपि।
- हनुमान जी किसी भी कार्य में कभी भी असफल नहीं हुए।
- धार्मिक कथा के अनुसार हनुमान जी भगवान शिव का 11वां रुद्र अवतार बताया जाता है।
- हनुमान जी के जन्म के बारे में बताया जाता है कि जब भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए पृथ्वी पर राम अवतार लिया तब भगवान शिव ने उनकी मदद के लिए हनुमान जी के रूप में अवतार लिया था।
- हनुमान जी के व्यक्तित्व से ज्ञान के प्रति समर्पण की शिक्षा मिलती है।
- हनुमान जी का जन्म चैत्र माह की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को हुआ था।
हनुमान जी का जन्म :
- हनुमान वानरों के राजा केसरी और उनकी पत्नी अंजनी के छः पुत्रों में सबसे बड़े हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के प्रिय हैं। इस धरा पर आठ चिरंजीवी हैं उनमें से सात को अमरत्व का वरदान मिला हुआ है हनुमान जी का अवतार राम की सहायता के लिये हुआ है।
- ज्योतिषीयों की गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में हरियाणा राज्य के कैथल जिले में हुआ था जिसे पहले कपिस्थल नाम से जाना जाता था।
हनुमान जी का बाल्यकाल के बारे में जानें :
- हनुमान जी के धर्म पिता वायु थे इसी कारण उन्हे पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। बचपन से ही दिव्य होने के साथ-साथ उनके पास असीमित शक्तियों का भण्डार था। जन्म के पश्चात् एक दिन वे उदय होते हुए सूर्य को फल समझकर उसे खाने के लिए उसकी ओर चले गये थे।
- हनुमान जी बालपन मे बहुत नटखट थे और साधु-संतों को सताते थे। वो साधु-संतों की पूजा सामग्री और अन्य वस्तुओं को छीन लेते थे। इस स्वभाव से रुष्ट होकर साधुओं ने उन्हें अपनी शक्तियों को भूल जाने का एक लघु श्राप दे दिया। इस श्राप के प्रभाव से हनुमान जी अपनी शक्तियों को अस्थाई रूप से भूल गए थे और पुनः किसी अन्य के याद दिलाने पर ही उन्हें अपनी शक्तियों का स्मरण होता था।
हनुमान जी का रुप कैसा है जानें :
- हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत बलशाली है। उनके कंधे पर जनेऊ लटका रहता है। हनुमान जी को एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहनते है। उनकी वानर के समान लंबी पूँछ है। और उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है। उनके मुख पर तेज अतुलनीय है । उनका शरीर पर्वत के समान विशाल और कठोर है तथा उनके मुख पर सदेव राम नाम की धुन रहती है।
हनुमान जी का नामकरण कैसे हुआ जानें :
- इन्द्र के वज्र से हनुमान जी की ठुड्डी (संस्कृत: में हनु) टूट गई थी। इसलिये उनको हनु से हनुमान का नाम दिया गया था। इसके अलावा हनुमान जी अनेक नामों से प्रसिद्ध है।
हनुमान जी के 108 नाम जानें :
- भीमसेन सहायकृते
- कपीश्वराय
- महाकायाय
- कपिसेनानायक
- कुमार ब्रह्मचारिणे
- महाबलपराक्रमी
- रामदूताय
- वानराय
- केसरी सुताय
- शोक निवारणाय
- विभीषणप्रियाय
- अंजनागर्भसंभूताय
- वज्रकायाय
- रामभक्ताय
- लंकापुरीविदाहक
- सुग्रीव सचिवाय
- पिंगलाक्षाय
- हरिमर्कटमर्कटाय
- रामकथालोलाय
- सीतान्वेणकर्त्ता
- वज्रनखाय
- रुद्रवीर्य
- वायु पुत्र
- रामभक्त
- वानरेश्वर
- ब्रह्मचारी
- आंजनेय
- महावीर
- हनुमत
- तत्वज्ञानप्रदाता
- मारुतात्मज
- सीता मुद्राप्रदाता
- अशोकवह्रिकक्षेत्रे
- सर्वमायाविभंजन
- सर्वबन्धविमोत्र
- रक्षाविध्वंसकारी
- परविद्यापरिहारी
- परमशौर्यविनाशय
- परमंत्र निराकर्त्रे
- परयंत्र प्रभेदकाय
- सर्वरोगहराय
- सर्वग्रह निवासिने
- सर्वदु:खहराय
- सर्वलोकचारिणे
- मनोजवय
- पारिजातमूलस्थाय
- सर्वमूत्ररूपवते
- सर्वतंत्ररूपिणे
- सर्वयंत्रात्मकाय
- प्रभवे
- सर्वविद्यासम्पत
- भविष्य चतुरानन
- रत्नकुण्डल पाहक
- चंचलद्वाल
- गंधर्वविद्यात्त्वज्ञ
- कारागृहविमोक्त्री
- सर्वबंधमोचकाय
- सागरोत्तारकाय
- प्रज्ञाय
- प्रतापवते
- दैत्यविघातक
- बालार्कसदृशनाय
- दशग्रीवकुलान्तक
- लक्ष्मण
- प्राणदाता
- महाद्युतये
- चिरंजीवने
- अक्षहन्त्रे
- कालनाभाय
- कांचनाभाय
- पंचवक्त्राय
- महातपसी
- लंकिनीभंजन
- श्रीमते
- सिंहिकाप्राणहर्ता
- लोकपूज्याय
- धीराय
- शूराय
- दैत्यकुलान्तक
- मार्तण्डमण्डलाय
- सुरारर्चित
- महातेजस
- रामचूड़ामणिप्रदाय
- कामरूपिणे
- मैनाकपूजिताय
- विनितेन्द्रिय
- रामसुग्रीव सन्धात्रे
- महारावण मर्दनाय
- स्फटिकाभाय
- वागधीक्षाय
- नवव्याकृतपंडित
- चतुर्बाहवे
- दीनबन्धवे
- महात्मने
- भक्तवत्सलाय
- अपराजित
- शुचये
- वाग्मिने
- योगिने
- दृढ़व्रताय
- कालनेमि प्रमथनाय
- दान्ताय
- शान्ताय
- प्रसनात्मने
- शतकण्ठमदापहते
- अनघ
- अकाय
- तत्त्वगम्य
- लंकारि
हनुमान चालीसा पूरी :
दोहा :
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुँचित केसा ॥
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेऊ साजे ॥
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मनबसिया ॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सवाँरे ॥
लाय सजीवन लखन जियाए।
श्री रघुबीर हरषि उर लाए ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना।
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।
जलधि लाँघि गए अचरज नाही ॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहु को डरना ॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तै कापै ॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै।
महावीर जब नाम सुनावै ॥
नासै रोग हरे सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तै हनुमान छुडावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई ॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा।
होय सिद्ध साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥
दोहा :
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
भारत में हनुमान जी के 10 बड़े मंदिर जाने :
- हनुमान मंदिर, इलाहबाद (उत्तर प्रदेश)
- हनुमानगढ़ी, अयोध्या
- सालासर हनुमान मंदिर, सालासर(राजस्थान)
- हनुमान धारा, चित्रकूट उत्तर प्रदेश
- श्री संकटमोचन मंदिर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
- भेट-द्वारका, गुजरात
- बालाजी हनुमान मंदिर, मेहंदीपुर (राजस्थान)
- डुल्या मारुति, पूना (महाराष्ट्र)
- श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर, सारंगपुर (गुजरात)
- हंपी, कर्नाटक
राजस्थान में हनुमान जी के बड़े मंदिर जानें :
- पांडुपाेल मंदिर : सरिस्का, अलवर (महाभारतकालीन लेटे हुए हनुमान जी, भीम का अहंकार तोड़ा था)
- इच्छापूर्ण बालाजी मंदिर : सरदारशहर (सिंहासन पर विराजित, सालासर की अखंड ज्योत)
- मेहंदीपुर बालाजी मंदिर : दौसा (एक हजार साल पहले पहाड़ पर प्रकट हुई प्रतिमा)
- खोले के हनुमानजी मंदिर : जयपुर (300 साल पहले संत ने चट्टान पर छवि उकेरी थी) )
- सालासर बालाजी मंदिर : सालासर, चूरू (दाढ़ी मूंछ वाले बालाजी, 265 वर्ष प्राचीन मंदिर)
- सामोद वीर हनुमानजी : सामोद, जयपुर (623 साल प्राचीन, 1108 सीढ़ियां चढ़कर दर्शन)